Monday, April 27, 2015

नवनीत पाण्डे की कवितायें



नवनीत पाण्डे हमारे समय के सजग कवि हैं!  उनकी कवितायें लगातार मूल्यहीनता और अवसरवादिता पर प्रहार करती चलती हैं!  वे लोक के प्रबल पक्षधर हैं।  उनका मानना हैं कि सामान्य से विशेष बनता है  अर्थात्  हाशिए, सामान्य ही मुख पृष्ठ को मुख पृष्ठ बनाते हैं!  पिछले दिनों विश्व पुस्तक मेला, दिल्ली में उनका हिंदी कविता का तीसरा संग्रह 'जैसे जिनके धनुष' लोकार्पित हुआ!  यह संग्रह बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित हुआ है!  इसी संग्रह से अपनी पसंद की कुछ कवितायें कवि के आत्म-कथ्य के साथ साझा कर रही हूँ!  ये कवितायें उनकी कविताओं के मिज़ाज़ से पूर्ण परिचय कराने में सक्षम है .... 





आत्म-कथ्य

पेड़ और रचनाकार में कुछ बातें समान होती है.. दोनो में हरापन होता है, दोनों ही समाज को कुछ न कुछ देते हैं लेकिन दोनों की जड़ों की गहरायी और फैलाव छिपा रहता है..पेड़ और रचनाकार को देख कोई नहीं बता सकता उसकी जड़ें कितनी गहरी और किस किस दिशा कहां तक किस रूप में फैली है। मुझे लगता है अपने समय के यथार्थ बीज से अपनी ज़मीन परिवेश में पल्लवित मैं भी एक शब्द-वृक्ष हूं। अपने दौर- दायरे में जो कुछ महसूस करता हूं... मेरे पास मेरे शब्द ही एक मात्र साधन, हथियार है जो उद्वेलित कर मेरे भीतर की सारी गूंजों-अनुगूंजों, उथल- पुथल सारी झंझावतों को बाहर कागज़ों पर उलीचते हैं, अभिव्यक्त करते हैं। बचपन से लेकर अब तक जीवन के हर पड़ाव ने जो कुछ भी मुझे दिखाया, सिखाया है और दिखा, सिखा रहा है अपने समय का वह निजी, प्रकृतिक, प्राकृतिक, सामाजिक-असामाजिक, राजनैतिक सम- विषम, नियत- नीतियां, आचार-विचार, चरित्रों के कटु- मृदु रिश्तों के सारे उलझाव- सुलझाव, कचोटने वाले यथार्थ हंसी, रुदन, पीड़ाएं मुझे स्तब्ध करती हैं, इन सबसे लोहा लेने की ताकत मुझे मेरी कलम ही देती है, अपने इस एक मात्र हथियार को मैं जन कवि हरीश भादानी के शब्द उधार लूं तो पल- पल की छैनी से धार करता रहता हूं, कभी जीत- कभी हार सब कुछ स्वीकार कर अपने भीतर के आदमी और उसकी आदमियत को ज़िंदा रखने की कोशिश करता रहता हूं सफल हूं कि नहीं.. यह कूंतने का ज़िम्मा वक्त पर छोड़ रखा है। अपने अग्रज पुरोधा कवि माखन लाल चतुर्वेदी की एक कविता से प्रेरित कभी लिखी एक साहित्य पैरोडी यहां साझा करना चाहूंगा …

चाह नहीं पुरस्कारों- सम्मानों से तौला जाऊं
चाह नहीं बड़े आलोचकों, आलोचना से मौला जाऊं
चाह नहीं झूठी तारीफों, प्रशंसाओं से फूला जाऊं
चाह नहीं आसमानी झूलों पर झूले खाऊं

पाठक मेरे कर पाओ तो काम ये करना नेक
जहां जहां हो संघर्ष
आदमियत और हकों के
शब्द मेरे तुम देना फेंक

- नवनीत पाण्डे



'जैसे जिनके धनुष' (काव्य संग्रह-नवनीत पाण्डॆ) से  कुछ कविताएं

 (1)
ऐसे डसता है कि सांप भी....


सांप को
सब जानते, पहचानते हैं
सांप है
उस में जहर है
सब बचते हैं
सांप
खुद डरते हैं
सब से बचते हैं
कभी
चलाकर नहीं डसते
आदमी तो
सांप का भी बाप है
सारी जान- पहचान धरी रह जाती है
इतना चुपचाप
इतने प्रेम से
ऐसे डसता है कि सांप भी.......



(2)
कहां खड़ा रहूं

कहां खड़ा रहूं
जहां भी दिखती है ज़मीन
अपने खड़े रहने माफिक
करता हूं जतन
कदमों को टिकाने की

पर जानते ही
खोखलापन-हकीकतें
ज़मीन की
कांपने लगते हैं कदम
टूट जाते हैं सारे स्वप्न
अपने पैरों पर खड़े होने के

सच!
अब सचमुच ही होगा कठिन
खड़े रह पाना
अपनी ज़मीन पर
बची ही कहां
और कितनी
एक अदद आदमी के
खड़े रहने के लिए
एक अदद
ठोस ज़मीन...



(3)
हाशिए ही तो.....

बहुत से मुखपृष्ठ
हाशियो से घबराते हैं
मुखपृष्ठी अपने दंभ में
हाशिये ही नहीं लगाते हैं
जहां कहीं
दिखायी देने लगते हैं हाशिए
उन्हें हटाने,
मिटाने की जुगत में लग जाते हैं
उन्हें कौन समझाए
हाशिए ही तो.....
मुख-पृष्ठ को
मुख-पृष्ठ बनाते हैं
 (4)
सबके यहां घराने है........

जब मैं कुछ कहूं-
तुम तालियां बजाना, बजवाना
जब तुम कुछ कहोगे-
मैं तालियां बजाऊंगा, बजवाऊंगा
तुम मुझ से यूं ही निभाते रहना
मैं तुम से यूं ही निभाता रहूंगा.....

मेरे बेसुरों पर तुम ताल ठोंकना
तुम्हारे बेसुरों पर मैं ताल ठोंकूंगा
मेरी असंगत को
तुम संगत देते रहना
तुम्हारी असंगत को
मैं संगत देता रहूंगा......

याद रहे! गीत हमें,
अपने- अपनों ही के गाने हैं
अकेला चना भाड़ नहीं झौंक सकता,
सबके यहां घराने है
तुम मुझे दरबार भिजवाते रहना
मैं तुम्हें दरबार भिजवाता रहूंगा।



(5)
अच्छे कवि- अच्छी कविताएं


अच्छे कवि वे होते हैं
जो अच्छी कविताएं लिखते हैं
अच्छी कविताएं वे होती हैं
जिनकी
अच्छे कवि,
अच्छे सम्पादक
अच्छे आलोचक
परम अच्छे मित्र
अच्छा होने की
उद्घोषणाएं  करते हैं

जो अच्छी पत्रिकाओं में
जो अच्छे  और
ऐसे प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में छपें
जिन में
अच्छी कविताओं के
अच्छे कवि के बारे में
अच्छे कवि,
अच्छे सम्पादक
अच्छे आलोचक
परम अच्छे मित्र
अच्छी- अच्छी
विस्तार से समीक्षाएं
अच्छे- अच्छे
आलोचनात्मक आलेख छपें

अच्छी पत्रिकाएं वें
जिन में
अच्छे कवि,
अच्छे सम्पादक
अच्छे आलोचक
परम अच्छे मित्र हों
और जो
प्रतिष्ठित पुरस्कारों के पैनलों की
सलेबस- कोर्स बुक हों

अच्छे - प्रतिष्ठित पुरस्कार वे
जो
अच्छे कवि,
अच्छे सम्पादक
अच्छे आलोचक
परम अच्छे मित्रों के
निर्णायक मण्डल द्वारा
केवल अच्छे कवि
अच्छी कविताओं को दिए जाते हैं

तो मित्रो!
भले आप
अच्छे कवि न हों
अच्छी कविताएं न लिख पा रहे हों
अच्छे कवि,
अच्छे सम्पादक
अच्छे आलोचक
परम अच्छे मित्र बनाइए
और अच्छी कविताओं के
अच्छे कवि होने की
जारी की जानेवाली सूचियों में
जितनी जल्दी हो सके
अपने को नामज़द करें!

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